मूँग उत्पादन की उन्नत तकनीक
मध्यप्रदेश में मूँग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। मध्यप्रदेश में मूँग की फसल हरदा, होशंगाबाद, जबलपुर, ग्वालियर, भिण्ड, मुरैना, शिवपुरी जिले में अधिक मात्रा में उगाई जाती है। अतः किसान भाई उन्नत प्रजातियों एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक को अपनाकर पैदावार को बढ़ा सकते है।
जलवायु :-
मूँग के लिए नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। मूँग की खेती वर्षा ऋतू में की जा सकती है। इसकी वृध्दि एवं विकास के लिए 25 - 32 °C तापमान अनुकूल पाया गया है। मूँग के लिए 750 - 900 मिमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त पाये गये है। पकने के समय साफ मौसम तथा 60 % आद्रता होना चाहिये। पकाव के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है।
भूमि :-
मूँग की खेती हेतु दोमट से बलुअर दोमट भूमियाँ जिनका पि. एच. 7.0 - 7.5 हो इसके लिए उत्तम है। खेत में निकास उत्तम होना चाहिए।
भूमि की तैयारी :-
खरीफ की फसल हेतु एक गहरी जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करना चाहिए एवं वर्षा प्रारम्भ होते ही 2 - 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें। दीमक से बचाव के लिये क्लोरोपायरीफॉस 1.5 % चूर्ण 20 - 25 किलोग्राम / हैक्टेयर के मान से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए।
ग्रीष्मकालीन मूँग की खेती के लिए रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4 - 5 दिन छोड़कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2 - 3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावे। इससे उसमें नमी संरक्षित ही जाती है व बीजों को अच्छा अंकुरण मिलता है।
बुवाई का समय :-
खरीफ मूँग की बुवाई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है। ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देनी चाहिए। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृध्दि के कारण फलियाँ कम बनती है। अथवा बनती ही नहीं है। इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।
उन्नत किस्मों का चयन :-
मूँग के अच्छे उत्पादन लिए सदैव उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए क्योंकि स्थानीय किस्में लम्बे समय में पकती है तथा रोग व व्याधियों का प्रकोप अधिक होता है जिससे उपज कम प्राप्त होती है। मध्यप्रदेश के अंतर्गत मूँग की फसल से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उन्नत किस्मों को अनुशंसित किया गया है।
किस्म का नाम
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अवधि (दिन)
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उपज (क्विंटल / हैक्टेयर)
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प्रमुख विशेषतायें
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टॉम्बे जवाहर मूँग-3 (टी.जे.एम.-3)
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60 – 70
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10 – 12
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ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों के लिए उपयुक्त।
फलियाँ गुच्छों में लगती है।
एक फली में 8 – 11 दाने।
100 दानों का वजन 3.4 – 4.4 ग्राम।
पीला मोजेक एवं पाउडरी मिल्डयू रोग हेतु प्रतिरोधक।
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जवाहर मूँग-721
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70 - 75
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12 – 14
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पूरे मध्यप्रदेश में ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम के लिये उपयुक्त।
पौधे की ऊंचाई 53 – 65 सेमी.।
एक गुच्छे में 3 – 5 फलियाँ।
एक फली में 10 – 12 दाने।
पीला मोजेक एवं पाउडरी मिल्डयू रोग हेतु सहनशील।
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के-851
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60 – 65 (ग्रीष्म ऋतु)
70 – 80 (खरीफ ऋतु)
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8 – 10 (ग्रीष्म ऋतु)
10 – 12 (खरीफ ऋतु)
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ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम के लिये उपयुक्त।
पौधें मध्यम आकार के (60 – 65 सेमी.)।
एक पौधें में 50 - 60 फलियाँ।
एक फली में 10 – 12 दाने।
दाना चमकीला हरा एवं बड़ा।
100 दानों का वजन 4.0 – 4.5 ग्राम।
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एच.यू.एम.-1
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65 - 70
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8 – 9
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ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम के लिये उपयुक्त।
पौधें मध्यम आकार के (60 – 70 सेमी.)।
एक पौधें में 40 – 55 फलियाँ।
एक फली में 8 – 12 दाने।
पीला मोजेक एवं पर्णदाग रोग के प्रति सहनशील।
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पी.डी.एम.-11
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65 – 75
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10 – 12
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ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम के लिये उपयुक्त।
पौधें मध्यम आकार के (55 – 60 सेमी.)।
मुख्य शाखाएं मध्यम (3 - 4)।
परिपक्व फली का आकार छोटा।
पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी।
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पूसा विशाल
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60 – 65
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12 – 14
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ग्रीष्म एवं खरीफ दोनों मौसम के लिये उपयुक्त।
पौधें मध्यम आकार के (55 – 70 सेमी.)।
फली का साइज अधिक (9.5 – 10.5 सेमी.)।
दाना मध्यम चमकीला हरा।
पीला मोजेक रोग सहनशील।
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बीजदर व बीज उपचार :-
खरीफ में कतार विधि से बुवाई हेतु मूँग 20 किलोग्राम / हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बसंत अथवा ग्रीष्मकालीन बुवाई हेतु 25 - 30 किलोग्राम / हैक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेंडाजिम : केप्टान (1 : 2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। ततपश्चात इस उपचारित बीज को विशेष राइजोबियम कल्चर की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से परिशोधित कर बोनी करें।
बुवाई का तरीका :-
वर्षा के मौसम में इन फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु हल के पीछे पंक्तियों अथवा कतारों में बुवाई करना उपयुक्त रहता है। खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दुरी 30 - 45 से. मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिए 20 - 22.5 से. मी. रखी जाती है। पौधे से पौधे की दुरी 10 - 15 से. मी. रखते हुए 4 से. मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक :-
उर्वरकों की मात्रा तत्व प्रति किलोग्राम / हैक्टेयर
नाइट्रोजन
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फास्फोरस
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पोटाश
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गंधक
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जिंक
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20
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40
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20
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25
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20
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नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय 5 - 10 से. मी. गहरी कूड़ में आधार खाद के रूप में दें।
सिंचाई व जल निकास :-
प्रायः वर्षा ऋतू में मूँग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है फिर भी इस मौसम में एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बिच लम्बा अन्तराल होने पर अथवा नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। बसंत एवं ग्रीष्म ऋतू में 10 - 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए। वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिए, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।
खरपतवार नियंत्रण :-
मूँग की फसल में निंदा नियंत्रण सही समय पर नहीं करने से फसल की उपज में 40 - 60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। खरीफ मौसम में फसलों में सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे संवा, दुब घास एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे पत्थरचटा, कनकवा, महकुआ, सफेद मुर्ग, हजारदाना एवं लहसुआ तथा मोथा आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत से निकलते है। फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था मूँग में प्रथम 30 - 35 दिनों तक रहती है। इसलिए प्रथम निराई-गुड़ाई 15 - 20 दिन पर तथा द्वितीय 35 - 40 दिन पर करना चाहिए। कतारों में बोई गयी फसल में व्हील हो नामक यंत्र द्वारा यह कार्य आसानी से किया जा सकता है। चूंकि वर्षा के मौसम में लगातार वर्षा होने पर निराई-गुड़ाई हेतु समय नहीं मिल पाता साथ ही श्रमिक अधिक लगने से फसल लागत बढ़ जाती है। इन परिस्थितियों में खरपतवार नियंत्रण के लिए निम्न खरपतवारनाशक रसायन का छिड़काव करने से भी खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। खरपतवारनाशक दवाओं के छिड़काव के लिए हमेशा फ्लैट फेन नोजल का ही उपयोग करें।
खरपतवारनाशी रसायन का नाम
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मात्रा (ग्राम सक्रिय पदार्थ /
हैक्टेयर)
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प्रयोग का समय
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नियंत्रित खरपतवार
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पेन्डिमिथिलीन
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700 ग्राम
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बुवाई के 0 – 3 दिन तक अंकुरण के पहले।
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घासकुल एवं कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार।
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इमेजाथायपर
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100 ग्राम
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बुवाई के 20 दिन बाद।
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घासकुल, मोथाकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार।
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क्यूजालोफाप ईथाइल
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40 – 50 ग्राम
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बुवाई के 15 – 20 दिन बाद।
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घासकुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण।
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कीट नियंत्रण :-
मूँग की फसल में प्रमुख रूप से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू तथा कम्बल किट का प्रकोप होता है। पत्ती भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु क्विनोल्फास की 1.5 लीटर या मोनोक्रोटोफॉस की 750 मि. ली. तथा हरा फुदका, महू एवं सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटों लिए डायमिथोएट 1000 मि. ली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. प्रति 600 लीटर पानी में 125 मि. ली. दवा के हिसाब से प्रति हैक्टेयर छिड़काव करना लाभप्रद रहता है।
रोग नियंत्रण :-
मूँग में अधिकतर पीला रोग, पर्णदाग तथा भभूतिया रोग प्रमुखतः आते है। इन रोगों की रोकथाम हेतु रोग निरोधक किस्मों का उपयोग करना चाहिए। पीला रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है इसके नियंत्रण हेतु मेटासिस्टॉक्स 25 इ. सी. 750 - 1000 मि. ली. का 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर छिड़काव 2 बार 15 दिन के अंतराल पर करें। फफूंद जनित पर्णदाग (अल्टरनेरिया / सरकोस्पोरा / माइरोथीसियस) रोगों के नियंत्रण हेतु डायइथेन एम.-45, 2.5 ग्राम / लीटर या कार्बेन्डाजिम + डायइथेन एम.-45 की मिश्रित दवा बनाकर 2.0 ग्राम / लीटर पानी में घोलकर वर्षा दिनों को छोड़कर खुले मौसम में छिड़काव करें। आवश्यकतानुरूप छिड़काव 12 - 15 दिनों बाद पुनः करें।
मूँग के प्रमुख रोग एवं नियंत्रण :-
पीला मोजेक
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रोग प्रतिरोधी अथवा सहनशील किस्मों जैसे टी.जे.एम.-3, के.-851, पन्त
मूँग-2, पूसा विशाल, एच.यू.एम.-1 का चयन करें।
प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें।
बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कतारों में करें प्रारम्भिक
अवस्था में रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें।
यह रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक सफेद मक्खी कीट है जिसे नियंत्रित
करने के लिये ट्रायजोफॉस 40 ईसी 2 मिली / लीटर अथवा थायोमेथोक्साम 25 डब्लू.जी.
2 ग्राम / लीटर या डायमेथोएट 30 ईसी 1 मिली / लीटर पानी में घोल बनाकर 2 या 3
बार 10 दिन के अंतराल पर आवश्यकता अनुसार छिड़काव करें।
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सरकोस्पोरा पर्णदाग
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रोग रहित स्वस्थ पौधों का प्रयोग करें।
खेत में पौधें घने नहीं होने चाहिये पौधों का 10 सेमी. के हिसाब से विरलिकारण
करें।
रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 75 डब्लू.पी. की 2.5 ग्राम / लीटर
या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. की 1 ग्राम / लीटर दवा का घोल बनाकर 2 – 3 बार छिड़काव
करें।
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एंथ्राक्नोज
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प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें।
फफूँदनाशक दवा जैसे मेन्कोजेब 75 डब्लू.पी. 2.5 ग्राम / लीटर या कार्बेन्डाजिम
50 डब्लू.पी. की 1 ग्राम / लीटर का छिड़काव बुवाई के 40 एवं 55 दिन पश्चात करें।
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चारकोल विगलन
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बीजोपचार कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. की 1 ग्राम / किग्रा बीज के हिसाब
से करें।
2 – 3 वर्ष का फसल चक्र अपनाये तथा फसल चक्र में ज्वार, बाजरा फसलों
को सम्मिलित करें।
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पाउडरी मिल्डयू
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रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
समय से बुवाई करें।
रोग के लक्षण दिखाई देने पर कैराथन या सल्फर पाउडर 2.5 ग्राम / लीटर
पानी की दर से छिड़काव करें।
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फसल पध्दति :-
मूँग कम अवधि में तैयार होने वाली दलहनी फसल है जिसे फसल चक्र में सम्मिलित करना लाभप्रद है। मक्का - आलू - गेँहू - मूँग (बसंत), ज्वार + मूँग - गेंहूँ, अरहर + मूँग - गेंहूँ, मक्का + मूँग - गेंहूँ। अरहर की दो कतारों के बीच मूँग की दो कतारे अन्तः फसल के रूप में बोना चाहिए। गन्ने के साथ भी इनकी अंतरवर्तीय खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।
कटाई एवं गहाई :-
मूँग की फसल क्रमशः 65 - 70 दिन में पक जाती है। अर्थात जुलाई में बोई गई फसल सितम्बर तथा अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कट जाती है। फरवरी - मार्च में बोई गई फसल मई में तैयार हो जाती है। फलियाँ पक्कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है। पौधों में फलियाँ असमान रूप से पकती है यदि पौधों की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती है अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2 - 3 बार में में करें एवं बाद में फसल को पौधें के साथ काट ले। अपरिपक्वास्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनों खराब हो जाते है। हॅसिए से काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त डण्डे से पिट कर या बैंलो को चलाकर दाना अलग कर लेते है वर्तमान में मूँग एवं उड़द की थ्रेसिंग हेतु थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।
उपज एवं भण्डारण :-
मूँग की खेती उन्नत तरीके से करने पर 8 - 10 क्विंटल / हैक्टेयर औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। मिश्रित फसल में 3 - 5 क्विंटल / हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। भंडारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धुप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमे नमी की मात्रा 8 - 10 % रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है।
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