Breaking News

Welcome to my blog "Agri Knowledge Bank"

Saturday, January 22, 2022

उड़द उत्पादन की उन्नत तकनीक

 उड़द उत्पादन की उन्नत तकनीक


    उड़द के लिये नम एवं गर्म मौसम की आवश्यकता पड़ती है। उड़द की फसल की अधिकतर जातियाँ प्रकाशकाल के लिए संवेदी होती है। वृध्दि के लिये 25–30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। 700–900 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में उड़द को सफलतापूर्वक उगाया जाता है। फूल अवस्था पर अधिक वर्षा होना हानिकारक है। पकने की अवस्था पर वर्षा होने पर दाना खराब हो सकता है। उड़द की खरीफ एवं ग्रीष्मकालीन खेती की जा सकती है।

भूमि का चुनाव एवं तैयारी :-

    उड़द की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि मे होती है। हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमें पानी का निकास अच्छा हो उड़द के लिये अधिक उपयुक्त होती है। पी.एच. मान 7–8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिए उपजाऊ होती है। अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है। वर्षा आरम्भ होने के बाद दो–तीन बार हल या बखर चलाकर खेत को समतल करे। वर्षा आरम्भ होने के पहले बोनी करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है।

उड़द की उन्नत किस्में :-

    मध्यप्रदेश के लिये अनुमोदित जातियों का चुनाव करें।

किस्म

पकने का दिन

औसत पैदावार (क्विंटल / हेक्टेयर)

अन्य

टी-9

70 – 75

10 – 11

बीज मध्यम छोटा, हल्का काला, पौधा मध्यम ऊंचाई वाला।

पंत यू-30

70

10 – 12

दाने काले मध्यम आकार के, पीला मौजेक क्षेत्रों के लिये उपयुक्त।

खरगोन-3

85 – 90

8 – 10

दाना बड़ा हल्का काला, पौधा फैलने वाला ऊंचा।

पी. डी. यू.-1 (बसंत बहार)

70 – 80

12 – 14

दाना काला बड़ा, ग्रीष्म के लिये उपयुक्त।

जवाहर उड़द-2

70

10 – 11

बीज मध्यम छोटा चमकीला काला, तने पर ही फल्लियाँ पास-पास गुच्छों में लगती है।

जवाहर उड़द-3

70-75

4 – 4.80

बीज मध्यम छोटा हल्का काला,पौधा मध्यम कम फैलने वाला।

बीज की मात्रा एवं बीज उपचार :-

    उड़द का बीज 15–20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बोना चाहिये। बुवाई के पूर्व बीज को 3 ग्राम थायरम या 2.5 ग्राम डायथेन एम-45 प्रति किलो बीज के मान से उपचारित करें। जैविक बीजोपचार के लिये ट्राइकोडर्मा फफूँद नाशक 5–6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपयोग किया जाता है।

बोनी का समय एवं तरीका :-

    मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्ताह में पर्याप्त वर्षा होने पर बुवाई करें। बोनी नाली या तिफन से करें, कतारों की दूरी 30 सेमी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 सेमी. रखें तथा बीज 4–6 सेमी. की गहराई पर बोयें।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा :-

    नत्रजन 20–30 किलोग्राम व स्फुर 50–60 किलोग्राम पोटाश 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दें। सम्पूर्ण खाद की मात्रा बुवाई के समय कतारों मे बीज के ठीक नीचे डालना चाहिये। दलहनी फसलों में गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करना चाहिये। विशेषतः गंधक की कमी वाले क्षेत्र मे 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर गंधक युक्त उर्वरकों के माध्यम से दें।

सिंचाई :-

    उड़द की फसल वर्षा आधारित है। यदि समय–समय पर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। ग्रीष्मकालीन फसल में 3–4 सिंचाई की आवश्यकता प्रति 20 दिन के अन्तराल से आवश्यक होती है। क्रांतिक अवस्था फूल एवं दाना भरने के समय खेत में नमी न हो तो एक सिंचाई देना चाहिये।

निराई–गुड़ाई :-

    खरपतवार फसलों के अनुमान से कही अधिक क्षति पहुँचाते है। अतः विपुल उत्पादन के लिये समय पर निराई–गुड़ाई कुल्पा व डोरा आदि चलाते हुये अन्य आधुनिक निंदानाशक का समुचित उपयोग करना चाहिये। निंदानाशक बासालीन 800 मिली. से 1000 मिली. प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में घोल बनाकर जमीन बखरने के पूर्व नमी युक्त खेत में छिड़कने से अच्छे परिणाम मिलते है।

उड़द में एकीकृत नाशी कीट प्रबंधन :-

    उड़द की फसल में अब तक 15 प्रकार के कीटों द्वारा क्षति दर्ज की गई है।

    कीट प्रकोप द्वारा इस फसल में 17–38 प्रतिशत तक हानि दर्ज की गई है। इनमें से कुछ प्रमुख कीट इस प्रकार है :-

    उड़द के हानिकारक कीटों हेतु उपयोगी रासायनिक, कीटनाशकों की मात्रा

कीट का नाम

कीटनाशक

मात्रा प्रति लीटर पानी

मात्रा / टंकी (15 लीटर पानी)

मात्रा / हे.

बिहार रोमिल, इल्ली, तम्बाकू इल्ली, फली भेदक, फली भृंग एवं अन्य इल्लीयां

क्वीनालफास

2 मी. ली.

30 मी. ली.

500 ली.

सफेद मक्खी

डाईमिथोएट 30 ई. सी.

2 मी. ली.

30 मी. ली.

500 ली.

हरा फुदका

डाईमिथोएट 30 ई. सी.

2 मी. ली.

30 मी. ली.

500 ली.


    उपरोक्त कीटनाशकों का छिड़काव हेतु आवश्यकतानुसार चयन करें। नेपसेक स्प्रेयर (15 ली. क्षमता) की 12 टंकी प्रति एकड़ तथा पॉवर स्प्रेयर की 5 टंकी प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव से 15 दिन बाद करें।

रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग :-

    कीटनाशी रसायन का घोल बनाते समय उसमें चिपको (चिपचिपा पदार्थ) जरूर मिलाएं ताकि वर्षा जल से कीटनाशक पत्ती व पौधों पर से घुलकर न बहें। धूल (डस्ट) कीटनाशकों का भुरकाव सदैव सुबह के समय करें। दो या अधिक कीटनाशकों का व्यापारिक सलाह पर मिश्रण न करें। कीटों में प्रतिरोधकता रोकने हेतु सदैव हर मौसम में कीटनाशक बदल-बदल कर उपयोग करें। कीटनाशक का घोल सदैव पहले डब्बे या मग्गे में बनाए उसके बाद उसे स्प्रेयर की टंकी में पानी के साथ मिलाएं। कभी भी टंकी मे कीटनाशक न डालें।

उड़द में एकीकृत रोग प्रबंधन :-

पीला चित्तेरी रोग :-

    इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में चितकबरे धब्बे के रूप में पत्तियों पर दिखाई पड़ते है। बाद मे धब्बे बड़े होकर पूरी पत्ती पर फैल जाते है जिससे पत्तियों के साथ-साथ पूरा पौधा भी पीला पड़ जाता है। यह रोग सफेद मक्खी कीट के द्वारा फैलता है।

पर्ण व्याकुंचन रोग या झुर्रीदार पत्ती रोग :-

    यह भी विषाणु रोग है। पत्तियों में सामान्य से अधिक वृध्दि तथा झुर्रियां या मरोड़पन लिये हुये तथा खुरदरी हो जाती है। फसल पकने के समय तक भी इस रोग में पौधे हरे ही रहते है। साथ ही पीला चित्तेरी रोग का संक्रमण हो जाता है।

मौजेक मौटल रोग :-

    इस रोग को कुर्बरता के नाम से भी जाना जाता है तथा इसका प्रकोप मूँग की अपेक्षा उर्द पर अधिक होता है। प्रारम्भिक लक्षण हल्के हरे धब्बे के रूप मे पत्तियों पर होते है बाद में पत्तियां सिकुड़ जाती है तथा फफोला युक्त हो जाती है। यह विषाणु बीज द्वारा संचारित होता है।

पर्ण कुंचन :-

    संक्रमित पत्तियों के सिरे नीचे की ओर कुंचित हो जाते है तथा यह भंगुर हो जाती है एसी पत्तियों को यदि उंगली द्वारा थोड़ा झटका दिया जाये तो यह डंठल सहित नीचे गिर जाती है। यह भी विषाणु जनित बीमारी है जो थ्रिप्स कीट द्वारा संचारित होती है।

सरकोस्पोरा पत्ती बुंदकी रोग :-

    पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। जिनकी बाहरी सतह भूरे लाल रंग की होती है। यह धब्बे पौधे की शाखाओं एवं फलियों पर भी पड़ जाते है। अनुकूल परिस्थितियों में यह धब्बे बड़े आकार के हो जाते है तथा पुष्पीकरण एवं फलियाँ बनने के समय रोग ग्रसित पत्तियाँ गिर जाती है।

श्याम वर्ण (एन्थ्रेकनोज) :-

    उड़द का यह रोग एक फफूँद जनक बीमारी है। पत्तियों एवं फलियों पर हल्के भूरे से गहरे भूरे काले रंग के वृत्ताकार धब्बे दिखाई पढ़ते है। रोग का अत्यधिक संक्रमण होने पर रोगी पौधा मुरझाकर मर जाता है।

चारकोल (मेक्रोफामिना) झुलसा :-

    यह भी एक फफूँद जनित बीमारी है। रोगी पौधों की वृध्दि रुक जाती है जिससे वे बौने दिखाई देते है। रोग से पौधे की फूल एवं फली बनने की क्रिया प्रभावित होती है।

चूर्णिता आसिता :-

    इस बीमारी में सर्वप्रथम पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर जैसी वृध्दि दिखाई देती है जो कवक के विषाणु एवं कवक जाल होते है। रोगी पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगती है। बीमारी से प्रभावित पौधे समय से पूर्व पक जाते हैं जिससे उत्पादन में भारी नुकसान होता है।

रासायनिक प्रबंधन :-

  • पीला चित्तेरी रोग में सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु मेटासिस्टाक्स 0.1 प्रतिशत या डाइमेथोएट 0.2 प्रतिशत प्रति हेक्टेयर (210 मिली/लीटर पानी) तथा सल्फेक्स 3 ग्राम/लीटर का छिड़काव 500–600 लीटर पानी में घोलकर 3–4 छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करके रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है।
  • झुर्रीदार पत्ती रोग, मोजेक मोटल, पर्ण कुंचन आदि रोगों के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 5 ग्राम/किलोग्राम की दर से बीजोपचार तथा बुवाई के 15 दिन के उपरांत 0.25 मि.ली./लीटर से इन रोगों के रोग वाहक कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
  • सरकोस्पोरा पत्र बुंदकी रोग, रुक्ष रोग, मेक्रोफोमिना ब्लाइट या चारकोल विगलन आदि के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम या बेनलेट कवकनाशी (2 मि.ली./लीटर पानी) अथवा मेन्कोजेब 0.30 प्रतिशत का छिड़काव रोगों के लक्षण दिखते ही 15 दिन के अंतराल पर करें।
  • चूर्ण कवक रोग के लिये गंधक 3 कि.ग्रा. (पाउडर)/हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
  • बीज को ट्राइकोडर्मा विरिडी, 5 ग्राम/कि. ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।

प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन :-

पीला चित्तेरी रोग के लिये :-

    पंत उर्द-19, पंत उर्द-30, पी.डी.एम.-1 (बसंत ऋतु), यू.जी.-218, पी.एस.-1, नरेंद्र उर्द-1, डब्ल्यू.बी.यू.-108, डी.पी.यू. 88-31, आई.पी.यू.-94-1 (उत्तरा)

चूर्ण कवक के लिये :-

    एल.बी.जी.-17, एल.बी.जी.-402

जीवाणु पर्ण बुंदकी रोग के लिये :-

    कृष्णा, एच-30, यू.एस.-131

पर्ण व्याकुंचन के रोग के लिये :-

    एस.डी.टी.-3

कटाई एवं गहाई :-

    उड़द की फसल की फलियाँ 80–90 प्रतिशत भूरे काले रंग की हो जाये तो फसल की कटाई कर लेना चाहिये और फसल 5–6 दिन धूप में सुखाने के बाद गहाई करना चाहिये।

No comments:

Post a Comment