पाले / शीतलहर से फसलों का बचाव
शीतलहर एवं पाले से सर्दी के मौसम में सभी फसलों को नुकसान होता है । पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलस कर झड़ जाते है तथा अध-पके फल सिकुड़ जाते है । फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते है व बन रहे दाने सिकुड़ जाते है।
पाले / शीतलहर से फसल सुरक्षा के उपाय
- पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों / नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिए फसलों को टाट, पॉलिथीन अथवा भूसे से ढक दें । वायुरोधी टटियाँ बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुनः हटायें।
- जब पाला पड़ने की संभावना हो तब फसलों मे हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए । नमीयुक्त जमीन में काफी देर तक नमी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है । जिससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
- जिन दिनों पाला पड़ने की संभावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनसिल गंधक 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) में घोल बनाकर छिड़काव करें । ध्यान रखें की पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे । छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है । यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की संभावना बनी रहे तो छिड़काव को 15 – 15 दिन के अंतर से दोहराते रहें या थायो यूरिया 500 पी. पी. एम. (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
- सरसों, गेंहू, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने मे गंधक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों मे लौह तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधित बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती हैं।
- दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिम मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी, अरडू आदि लगा दिये जाये तो पाले और ठण्डी हवा के झोंकों से फसल का बचाव हो सकता है।
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