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Saturday, June 13, 2020

मक्का उत्पादन की उन्नत तकनीक

मक्का उत्पादन की उन्नत तकनीक


          मक्का मध्य प्रदेश की प्रमुख फसल है। मक्के की खेती मुख्य रूप से छिन्दवाड़ा, मण्डला, शिवपुरी, सीधी, रतलाम, राजगढ़, झाबुआ, मन्दसौर आदि जिले में होती है। विश्व में मुख्य खद्यान्न फसलों में गेंहूँ एवं धान के बाद तीसरी मुख्य फसल के रुप मे मक्का सामने आ रही है। इसका मुख्य कारण यह है की इसकी उत्पादन क्षमता गेंहूँ एवं धान से 25 – 100 प्रतिशत तक अधिक है।

  • भूमि का चयन एवं भूमि की तैयारी :-

          मक्का की खेती के लिये पर्याप्त जीवांश वाली व अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि होनी चाहिये। भूमि रेतीली एवं भारी भूमि नहीं होनी चाहिये। मक्का की बोनी हेतु  3 बार जुताई करने के पश्चात पाटा चलाकर खेत की तैयारी करें। अन्तिम जुताई के पुर्व 20 किलो प्रति हैक्टेयर फोलीडाल व 3 प्रतिशत / पैराथियान डस्ट डालना चाहिये . अगर उपलब्ध हो तो लगभग 5 – 10 टन गोबर की खाद डालने से उत्पादन में व्रध्दि होती है।

  • बिजोपचार :-

          बीजों की अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है एवं जनित फफुंदजन्य बीमारियों से सुरक्षा होती है। बीमारी के बचाव हेतु कार्बेंडाजिम 1 ग्राम एवं थायरम 2 ग्राम / किग्रा बीज अथवा वीटावेक्स पावडर 1 ग्राम / किग्रा की दर से उपचार करें। कीट प्रबन्धन के लिये एमीडाक्लोप्रीड 70 ( डब्लू एस ) 5 ग्राम / किग्रा की दर से उपचारित करें . जिससे पौधे 30 दिन तक सुरक्षित किये जा सकते है। बीजों को पहले चिपचिपे पदार्थ से भिगोकर दवा मिला दें फिर छाया में सुखाएँ और दो घंटे बाद बोनी करें।

  • जैव उर्वरक का उपयोग :-

          यह पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने का कार्य करते है। 3 किग्रा पी. एस. बी. एवं 3 किग्रा एजोटोबेक्टर को लगभग 100 – 150 किग्रा गोबर की खाद मे मिलाकर बुवाई के पहले छिड़काव करने से अच्छे परिणाम मिलते है।

  • बोनी का समय :-

          बुआई हेतु 15 – 30 जून खरीफ मौसम एवं रबी मौसम मे अक्टुम्बर माह उपयुक्त माना जाता है। जायद के लिये फसल की बुआई का समय निश्चित करते समय यह ध्यान रखें कि फुल की अवस्था के समय तापमान 35 डिग्री से. ग्रे. से अधिक ना हो। मक्का बोने की गहराई 3 – 5 से.मी. रखनी चाहिये। कतार में बोनी की तुलना में रिज एण्ड फरो पध्दति से बुवाई करने से जल एवं खरपतवार प्रबंधन उचित होता है। एवं अधिक उपज प्राप्त होती है।

  • बीज दर :-

          मक्का में छोटे और बड़े दानों के अनुसार बीज की मात्रा अधिक या कम होती है। सामान्यत: 15 – 20 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर उपयुक्त होता है।

कतार से कतार एवं पौधों से पौधें की दुरी

क्र.
विवरण
कतार से कतार की दूरी से.मी.
पौधे से पौधे की दूरी से.मी.
प्रति हैक्टर पौधों की संख्या
1.
जल्दी पकने वाली
60
20
80000
2.
मध्यम अवधि 
60
22
75000
3.
देर से पकने वाली
75
20
65000

  • उपयुक्त किस्मों का चयन :-

मक्का की कई प्रजातियाँ बोई जाती है। मुख्यतः प्रदेश में प्रचलित जातियाँ निम्नानुसार है :-
किस्म
फसल अवधि
उत्पादन प्रति हैक्टर
विशेषताऐं
जेएम - 216
90 – 100 दिन
40 – 50 क्वींटल
पीला एवं बड़ा दाना।
जेएम – 12
85 – 90 दिन
45 -50 क्वींटल
सफ़ेद दाना।
नर्मदा मोती
80 – 85 दिन
35 – 40 क्वींटल
पीला दाना, ब्लाइट प्रतिरोधी।
अमर
80 – 85 दिन
40 – 45 क्वींटल
औरेंज दाना।

  • खाद - उर्वरक :-

          सामान्यतः 6 - 8 टन प्रति हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट अथवा केंचुआ खाद का प्रयोग बोनी के पूर्व करना चाहिए। मृदा परीक्षण कराकर पोषक तत्वों की अनुशंसित मात्रा दी जानी चाहिये।

संतुलित उर्वरकों की मात्रा :-

अवधि पकने के
अनुसार
पोषक तत्व (किग्रा / है.)
विकल्प - 1
विकल्प - 2
विकल्प - 3
नत्रजन
फास्फोरस
पोटाश
उर्वरक (किग्रा / है.)
उर्वरक (किग्रा / है.)
उर्वरक (किग्रा / है.)
यूरिया
सुपर फास्फेट
म्यूरेट ऑफ पोटाश
यूरिया
डी. ए. पी.
म्यूरेट ऑफ पोटाश
यूरिया
एन:पी:के
12:32:16
म्यूरेट ऑफ पोटाश
शीघ्र
90
40
30
200
250
50
161
87
50
163
125
17
मध्यम
120
50
30
270
312
50
217
109
50
219
156
50
देरी
180
60
40
400
375
66
340
130
66
342
188
66

          नत्रजन की एक तिहाई मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई करते समय कतारों में दें। शेष दो तिहाई में से एक तिहाई नत्रजन 25 - 30 दिन पर एवं शेष एक तिहाई 45 - 50 दिन पर खड़ी फसल में दें। खेत में पानी भरने की स्थिति में एवं निंदाई गुड़ाई में देरी होने पर नत्रजन 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से निश्चित रूप से दें। खड़ी फसल में नत्रजन का प्रयोग निंदाई उपरान्त ही करें। सूक्ष्म तत्वों में जिंक 25 किग्रा / हैक्टेयर जिंक सल्फेट के रूप में बोन से पहले छिटकवा विधि से देना चाहिये।

  • सिंचाई :-

          मक्का वर्षा आधारित फसल है। रबी में मक्का की फसल को 5 - 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है, 15 - 20 दिन के अंतराल से सिंचाई करना चाहिये।

  • खरपतवार नियंत्रण :-

          मक्का फसल को शुरुवाती अवस्था में नींदा रहित होना चाहिए अन्यथा उत्पादन में कमी आती है। मक्का की फसल में एट्राजीन 1 किग्रा प्रति हैक्टेयर बुवाई के बाद परन्तु उगने के पूर्व उपयोग करें। अन्तरवर्ती ( मक्का + दलहन / तिलहन ) फसल व्यवस्था में पेंडीमिथिलीन 1.5 किग्रा प्रति हैक्टेयर बोनी के तुरंत बाद किन्तु अंकुरण के पूर्व नींदानाशकों का उपयोग करें। मक्का फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की अधिकता होने पर 30 - 35 दिन पर 2,4-डी का 1.0 किग्रा प्रति हैक्टेयर उगे हुए खरपतवारों पर छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है।

  • पौध संरक्षण :-

रोग प्रबंधन


क्र.

रोग का नाम

लक्षण
नियंत्रण हेतु अनुशंसित दवा
दवा की मात्रा
उपयोग करने का समय एवं विधि
1.
पर्ण अंगमारी
छोटे गोल / अण्डाकार भूरे कत्थई रंग के धब्बे बनते है।
जिनेम / मिनेब
2.5 – 4 ग्रा / ली. पानी
8 – 10 दिन के अंतराल पर
2.
भूरी चित्ती
पत्तियों, तने तथा भुट्टे के बाहरी छिलके पर हलके पिले रंग के 1.5 मिलीमीटर व्यास के गोलाकार / अण्डाकार धब्बे बनते जाते है।
डाइथेन एम 45
2 – 2.5 ग्रा / ली. पानी
बीमारी के शुरुआत होने पर
3.
मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू)
प्रारंभ में निचली पत्तियों पर लंबवत 3 मिलीमीटर चौड़ी पिले रंग की धारियाँ समान्तर रूप में बनती है। बाद में यह धारियाँ भूरे रंग में बदल जाती है।
एप्रोन 35 डब्लू. एस (फफूंदनाशक)
2.5 ग्रा / किग्रा बीज
बीजोपचार


किट प्रबंधन

क्र.
किट का नाम
लक्षण
नियंत्रण हेतु अनुशंसित दवा
दवा की मात्रा
उपयोग करने का समय एवं विधि
1.
तना छेदक मक्खी
इसके प्रकोप से पौधे का मुख्य प्ररोह कट जाने से मृत केंद्र (डेड हार्ट) बन जाता है तथा पौधा मर जाता है।
फोरेट 10 जी
10 किग्रा / हे.
बोनी पूर्व
2.
तना छेदक कीट
इल्लियाँ पहले पत्तियों को खुरच - खुरच कर खाती है, जिससे मृत केंद्र (डेड हार्ट) बन जाता है।
कार्बोफ्यूरान 3 जी
10 किग्रा / हे.
15 दिन की अवस्था में पौधों की पोंगली में डाले।


जिस समय इल्ली पत्ती को खुरच कर खाती है।
क्लोरोपायरीफॉस 20 ई. सी.
10 किग्रा / हे.


  • कटाई एवं गहाई :-

          साधारण थ्रेशर में थोड़ा परिवर्तन करते हुये मक्का की गहाई आसानी से की जा सकती है। इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं होती। भुट्टे सूखे होने पर सीधे थ्रेशर में डालकर गहाई की जा सकती है। दाने का कटाव भी नहीं होता है। कड़बी एवं भुट्टे खेत में काफी सुख जाते है, इस दशा में सीधे कड़बी सहित थ्रेशर में डालने से भी दाने आसानी से निकाले जा सकते है। कड़बी का भूसा जानवरों के  खाने योग्य बन जाता है।

  • कम लागत से अधिक उपज प्राप्त करने की तकनीकि :-

  1. उचित जल निकास वाली भूमि का चयन करें।
  2. भूमि की उपयुक्तता के अनुसार प्रजाति का चुनाव करें।
  3. संतुलित एवं अनुशंसित  खाद की मात्रा का प्रयोग करें।
  4. बीज, कीटनाशक, दवाओं आदि की अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग करें।
  5. अधिक उत्पादन देने वाली संकर किस्मों का प्रयोग करें।
  6. नींदा नियंत्रण हेतु आरम्भिक अवस्था में खरपतवार प्रबंधन करें।
  7. कीट व्याधि से बचाव के लिए प्रबंधन करें।

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